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नब्बे के दशक में अचानक से “भारतीय सुंदरियाँ” अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में छा गई थी. शुष्मिता सेन, ऐश्वर्या राय, लारा दत्ता आदि इसके उदाहरण हैं. इसके बाद देखते ही देखते भारत में सुंदरता को लेकर जागरूकता आई और रातों रात कई सारे ब्यूटी प्रोडक्ट्स भारतीय बाजारों में छा गये. फिर अचानक से सौंदर्य प्रतियोगिताओं में भारत्तीय सुंदरियों की वह प्रतिद्वन्दता ना जाने कहाँ चली गई.
एक बार फिर क्या ये एक संयोग मात्र है कि भारत में “डिजिटल इंडिया” कैंपेन ज़ोर-सोर से चल रहा है और उधर “भारतीय दिमाग” सर चढ़ कर बोल रहा है. लगभग सभी दिग्गज आई.टी. कंपनियों के प्रमुख भारतीय मूल के हैं, सुन्दर पिचई, सत्या नडेला एवं शांतनु नारायण इस के उदाहरण हैं.
हम भारतीया सच में बहुत भोले-भाले होते हैं इसलिए इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों की दूरदर्शिता नहीं समझ पातें हैं. सच में ये सब एक बहुत ही सोची समझी बिजनेस रणनीति का हिस्सा मात्र होता है. बहुराष्ट्रीय कंपनियों की इस रणनीति में चतुराई से हम अपना कितना हित साध पाते हैं ये हमारी रणनीति पर निर्भर करता है.
सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियां वह बेचती है जो हम खरीदना चाहते हैं मतलब पहले वह डिमाण्ड पैदा करतीं हैं और फिर वही उत्पाद या सेवाये लांच कर देतीं हैं जिसके खरीददार अधिक हैं.
हमारे यहाँ खरीददार तो पहले से ही थे अब भारतीयता दिखाने की भी एक दौड़ सोशल मीडिआ पर तेजी से आरम्भ हो चुकी है. उन्हें मार्किट चाहिए और हमें तकनिकी यहाँ तक तो ठीक है लेकिन इससे अधिक कुछ हो तो हमारे रणनीतिकार थोड़ा और सर खपा कर पता लगाने की कोशिश करें.
अनुज करोसिया
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