सिर्फ हंगामे खड़े करना मेरा मकशद नहीं, मेरी कोशिश है ये सूरत बदलनी चाहिए।।।।।।।।
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टू जी घोटाला, एक ऐसा घोटाला जिसने भारतीय लोकतंत्र को हिला के रख दिया. और आम आदमी को इस घोटाले के खुलने के बाद भी पता नहीं लगा कि 176,645 करोड़ अर्थात US$35.24 बिलियन में कितने जीरो लगते है. हाँ ये जरुर पता लगा की हवा भी बिकती है वो भी इतनी महंगी. शुरुवाती दिनों मैं तो आम आदमी को ऐसा लगा कि इस सारे पैसे को 121 करोड़ लोगो मैं बांटा जायेगा. हर व्यक्ति दिल खोल के ऐ राजा को बुरा भला बोल रहा था. आम आदमी की ख़ुशी का ठिकाना न था. और हर आम खास होने के लिए उतावला दिख रहा था. लेकिन ये क्या हुआ “एक बार आम का सीजन गया तो वापस नहीं आया”. काश हमारे देश मैं “हर मौसम आम” का जमाना होता और जनतंत्र/लोकतंत्र के बजाय “आमतंत्र” होता. क्योंकि धीरे धीरे स्थिति साफ हुई और पता लगा की इस घोटाले के खुलने का नुकसान खास को होने मैं तो अभी बहुत वक्त लगेगा लेकिन आम को उसकी कीमत जल्दी ही चुकानी पड़ेगी. क्योंकि बड़े हुई स्पेक्ट्रम की नीलामी के दाम टेलिकॉम कंपनिया सीधे आम आदमी से ही बसूलेंगी. ये तो यही बात हुई की ये जो चाहे इन्हे करने दो यदि रोका तो कीमत भी आम आदमी ही चुकाएगा. इससे बढ़िया तो ये होता की ये घोटाला खुलता ही नहीं कम से कम आम आदमी को उसकी कीमत सीधे तो नहीं चुकानी पड़ती. क्या यही जनतंत्र है जहाँ सारी कीमत आम जनता को ही चुकानी पड़ती है. यदि २ जी घोटाला खुलने की बजह से कीमते बड़ी तो आम आदमी की आह निकलेगी और वो ये ही सोचेगा “काश टू जी घोटाला ना खुलता”.
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