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इतना दर्द, दोषी कौन?

सिर्फ हंगामे खड़े करना मेरा मकशद नहीं, मेरी कोशिश है ये सूरत बदलनी चाहिए।।।।।।।।
सिर्फ हंगामे खड़े करना मेरा मकशद नहीं, मेरी कोशिश है ये सूरत बदलनी चाहिए।।।।।।।।
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कोई कहता है की अगर रोड पर इतने बड़े बड़े गड्ढे न होते तो ऐसा नहीं होता, कोई कहता है की अगर रोडवेज बस चालक ने लापरवाही नहीं की होती तो ऐसा न होता, कोई कहता है की अगर सहयात्री मानवीयता दिखाते तो उन्हें बचाया जा सकता था, कोई कहता है अगर चोराहे पर, दुकानों पर, चौकी पर एक भी इंसान मैं इंसानियत होती तो ऐसा नहीं होता, कोई कहता है की अगर बस चालक, परिचालक उन्हें बीच रास्ते मैं न छोड़कर जिला अस्पताल की इमरजेंसी में पंहुचा देते तो ऐसा न होता. कोई कहता है की अगर जिला अस्पताल की इमरजेंसी मैं तेनात चिकित्शक अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाता तो इतना कुछ होने के बाद भी कुछ नहीं होता.

 

और एक माँ रो रो के कहती है कि कास उसका बेटा उस दिन बीमार हो गया होता, एक पत्नी रो रो के कहती है कि कास आज हमारी नोक झोक हो गई होती, बच्चे कहते है कि कास आप हमें डांटते डाटते जाने मैं लेट हो गए होते. एक पिता जिसकी आँखे अपनी माँ अपने बाप के जाने पर भी गीली नहीं थी आज सूखने का नाम नहीं ले रही थी. एक भाई जो गैरों का खून देख कर बेहोश हो जाया करता था आज अपने सगे बड़े भाई के खून से भीगा हुआ बैठा क़ानूनी कार्यवाहिया करा रहा था. एक भाई जो किसी के दर्द को समझ नहीं सकता था वो दर्द से कराह रहा था. एक भाई जो किसी के आंशु नहीं देख सकता था, किसी भी रोते हुए को चुप कराने का हौसला था जिसके पास, आज किसी को चुप कराने की बजह ही नहीं थी उसके पास.

वाकया एक सितम्बर शाम ३:३०PM- ४:००PM, स्थान- भोगांव चौराहा (जिला मैनपुरी- उत्तर प्रदेश). डॉक्टर नवीन कुमार (मेडिकल ऑफिसर-सी एच, अल्लाहगंज, जिला- शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश), उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बस से मैनपुरी से फरुक्काबाद की और जा रहे थे. रास्ते मैं भोगांव चौराहे पर बहुत बड़े बड़े गड्डे थे बस का पिछला हिस्सा चालक की लापरवाही की बजह से तेजी से गड्ढे मैं गया और सामने से आ रहा ट्रक भी उसी गड्ढे मैं गया आपस मैं एक जोरदार टक्कर हुई और डॉक्टर कुमार ही अकेले ऐसे यात्री थे जिनके दाये हाथ मैं गंभीर चोटे आई. खून का बहाव इतना तेज था की सारी सवारिया घबराकर नीचे उतर गई. सवारिया उन्हें बस चालक से जिला अस्पताल ले जाने के लिए दबाब बनाने लगी तभी बस चालक एवं परिचालक दोनों घटना स्थल से फरार हो गए. इसी दोरान डॉक्टर कुमार ने अपना परिचय सहयात्रियों को दिया तथा उन्हें बताया की जल्दी से सी ऍम ओ, मैनपुरी, को सूचित करो और साथ में ये भी बताया की वे पूर्व मैं ओंग, सगामई, जिला मैनपुरी मैं भी सम्बिदा चिकित्शक पद पर अपनी सेवाए दे चुके है. ये सारी सूचनाये एक सहयात्री द्वारा, जिला अस्पताल, मैनपुरी के इ एन टी-स्पेस्लिस्ट डॉक्टर जनार्दन के मोबाइल के माध्यम से सी ऍम ओ मैनपुरी को दुर्घटना के तुरंत बाद दे दी गई. साथ ही ये भी बताया गया की इनका खून बहुत बह चूका है. साथ ही एक सहयात्री के माध्यम से ये सुचना डॉक्टर कुमार की पत्नी श्रीमती रूपा देवी (जो की फरुक्काबाद मैं थी जहाँ डॉक्टर साहब अपनी पत्नी तथा दो बच्चों-नरुल एवं शिवांग, क्रमशः सात साल एवं चार साल के साथ अस्थाई रूप से रह रहे थे) को भी दे दी गई, जिन्हें डॉक्टर साहब ने खुद बताया की “मेरा एक्सीडेंट मैं एक हाथ कट चूका है, जहाँ जहाँ चाहो जल्दी से कोल करो मैं और ज्यादा बात नहीं कर सकता”. डॉक्टर साहब की पत्नी ने अपने देवर को (सिरसागंज, जिला फिरोजाबाद) मैं फ़ोन करके जानकारी दी. डॉक्टर साहब के परिवार से माँ, पिता जी, दो भाई तुरंत गाडी से घटना स्थल की और रवाना हो गए. तथा उनकी पत्नी बच्चो के साथ फरुक्काबाद से रवाना हो गई. इधर घटना स्थल पर थोड़ी ही देर के बाद बस चालक परिचालक कुछ लडको के साथ आये और ये बोलते हुए बस खाली कराने लगे की बस को लेकर इमरजेंसी जाना है. सारे यात्री वही उतर गए. बस चालक, परिचालक एवं उनके साथ आये ताथाकतिक व्यक्तियों ने डॉक्टर कुमार को इमरजेंसी से पहले ही अकेला उतरा और वहां से चले गए. तब तक डॉक्टर कुमार होश मैं थे, वो एक रिक्शे के द्वारा इमरजेंसी पहुचे. जिला अस्पताल इमरजेंसी मैं तेनात डॉक्टर के सी भरद्वाज को अपना परिचय दिया तथा ये भी बताया की मेरा खून बहुत बह चूका है, मैं किसी भी वक्त बेहोश हो सकता हूँ. जब डॉक्टर साहब के परिजन वहां पहुचे तब तक प्राथमिक चिकित्शा के नाम पर उनके गंभीर रूप से घायल हाथ पर पट्टी ही बांधी गई थी. अत्यधिक रक्तश्राव की सुचना होने के बाबजूद भी उन्हें एक भी यूनिट खून नहीं दिया गया. जाते ही डॉक्टर ने उन्हें आगरा रेफर कर दिया. इतनी गंभीर हालत होने के बाबजूद भी सारा मामला वहां पर उपस्थित बार्ड बॉय एवं चतुर्थ श्रेडी कर्मचारी संभाले हुए थे. ना ही इमरजेंसी में तेनात डॉक्टर शीट से उठा और ना ही डॉक्टर कुमार के परिजनों को स्थिति के बारे में कोई सही जानकारी दी. इतना खून बह जाने के बाद उन्हें तुरंत खून दिया जाना चाहिए था क्योंकि जिला अस्पताल मैं ब्लड बैंक भी है और बड़े ऑपरेशन की सुविधा भी. इमरजेंसी मैं तेनात डॉक्टर से घोर लापरवाही दिखाते हुए बगैर खून की बोतल लगाये प्राइवेट अम्बुलंस से उन्हें आगरा भिजवा दिया. डॉक्टर कुमार इसके बावजूद भी आगरा से दस किलोमीटर पहले तक होश मैं थे. जब उन्होंने अंतिम सांस ली तो उनके भाई को लगा वो बेहोश हो गए है, जबकि तब वह उनकी अंतिम सांस थी……………………………………………………………………………………………………………………

आप सोच रहे होंगे मुझे इतना कुछ कैसे पता चला? मैं डॉक्टर नवीन कुमार का सबसे छोटा भाई हूँ, सबसे छोटा होने की बजह से मुझे घर पहुचने तक सही जानकारी नहीं दी गई. आगरा जाके हमें बताया गया की छोटी सी घटना इतनी बड़ी दुर्घटना मैं बदल चुकी है.

जो इस दुनिया मैं आया है उसका जाना भी तय है लेकिन किसी ना किसी के ऊपर दोष तो आता ही है. यहाँ दोषी कौन है?? क्या वो रोडवेज चालक और परिचालक जिन्होंने उन्हें इस हालत मैं रास्ते पे छोड़ दिया? या वह डॉक्टर जिसने एक बूंद खून की नहीं दी?? या हम उनके परिजन जो उन्हें बचाने के लिए कुछ ना कर सके?? क्योंकि मात्र एक हाथ मैं चोट किसी की मौत का कारण बन ही नहीं सकती.

सरकार लाख दावे करे लेकिन सड़क सुरक्षा एवं एक्सिडेंट के बाद चिकित्सा के नाम पर आज भी हम १०० साल पीछे है. यदि एक डॉक्टर के साथ ऐसा हुआ है तो आम आदमी के साथ क्या क्या होता होगा. मात्र एक हाथ मैं चोट किसी की मौत का कारण बन ही नहीं सकती. इमरजेंसी मैं तेनात चिकित्सक के खिलाप हमारी जंग जारी है और उसे सजा दिलाये बगैर हम दम नहीं लेंगे. इससे डॉक्टर साहब को वापस तो नहीं ला सकते लेकिन उस चिकित्सक के खिलाप कार्यवाही इस भाति लापरवाही से होने वाली असमय मौतों का कारन बनने वाले चिकित्सको के लिए एक सबक का काम करेगी. ताकि जो हमारे साथ हुआ वो किसी और के साथ ना हो.

डॉक्टर कुमार ने बहुत ही संघर्ष शील जीवन जिया. दिसम्बर २०११ में उनकी निउक्ति लोकसेवा आयोग से हुई थी तब उनके संघर्ष शील जीवन का अंत हुआ था. और जिस विभाग मैं उन्होंने विभिन्न पदों (जिसमे “जिला कार्यक्रम प्रबंधक-जिला द्रष्टि हीनता निवारण समिति फिरोजाबाद” भी शामिल है) पर कार्य करते हुए अपने १० साल दिए उस विभाग की लापरवाही ने उनके जीवन का अंत कर दिया.

डॉक्टर साहब की उम्र मात्र ३८ थी. अपने पीछे वो अपनी पत्नी के अतरिक्त, दो छोटे बेटे, बूड़े माँ-बाप, तीन भाईयों को रोता बिलखता छोड़ गए. “इश्वर मैं जितनी अटूट श्रद्धा एवं विश्वास था वो पूरी तरह टूट चूका है. यदि ऐसी कोई शक्ति कही होगी तो वो खुद इस श्रद्धा एवं विश्वास को पुन्र स्थापित करेगी.”

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